जगन्नाथ मंदिर की स्थापना 1860 में सदर बाजार में हुई थी ,रायपुर की पुरानी बस्ती में स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर को साहूकार मंदिर के नाम से जाना जाता था। मंदिर में भगवन जगन्नाथ की प्रतिमा स्थापित होने के बाद भी इसे जगन्नाथ मंदिर के रूप में पहचान नहीं मिली। इस मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पूर्ण ह।
जगन्नाथ स्वामी के अलावा
इस परिसर में जगन्नाथ स्वामी के अलावा श्री राम दरबार , दो शंकर मंदिर ,संतोषी माता मंदिर , गरुड़ और संकट मोचन हनुमान मंदिर भी है |
प्रमुख उत्सव
मंदिर का प्रमुख उत्सव रथयात्रा है
मंदिर से निकलने वाली रथ यात्रा में शामिल होने और भगवन का रथ खींचने के लिए राजधानी के आस पास से हजारो श्रद्धालुओ को रथ खींचने का मौका मिलता है,वे उन्हें भाग्यशाली समझते है ,जिन श्रद्धालुओ को रथ खींचने का मौका नहीं मिल पाता, वे रथ की रस्सी को छूने की कोशिश करते है|राजधानी में वैसे तो आठ जगन्नाथ मंदिर हैं, किन्तु तीन बड़े मंदिरों से निकलने वाली रथयात्रा में हजारों भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है|
परंपराओं
हिन्दुओं के पवित्र तीर्थस्थलों चारधाम में से एक ओडिशा का पुरी मंदिर भी है, जहां भगवान जगन्नाथ विराजे हैं। वहां की अनेक परंपराओं का पालन राजधानी रायपुर के जगन्नाथ मंदिरों में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में ओडिशा से आए लाखों लोग कई शहरों में रहते हैं। इसके कारण छत्तीसगढ़ और ओडिशा की संस्कृति में काफी समानताएं हैं, इसका उदाहरण जगन्नाथ यात्रा में दिखाई देता है।पुरी में निभाई जाने वाली रस्मों का हूबहू पालन यहां किया जाता है। यहां पुरी के मंदिर की तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान को स्नान कराने और बीमार पड़ने के बाद पंचमी, नवमी, एकादशी पर काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है।
जिस साल दो आषाढ़ होते है
उस साल मूर्ति बदलने की परंपरा है, लेकिन पुरनी बस्ती के जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति को नहीं बदला जाता क्योकि यह श्री मूल मुर्तिया जगन्नाथ पूरी से लाई गई है, हर साल जगन्नाथ पूरी से विशेष कलाकार आते है और रंग रोगन के कार्य करते है भगवान जगन्नाथ में जो श्रद्धालु पहुँचते है ,उनकी मनोकामना पूर्ण होता है आषाढ़ मास की पूर्णिमा को जगन्नाथ भगवान का महा स्नान किया गया था उसके बाद से उन्हें बुखार होने के कारण विश्राम कराया जाता है रोजाना उन्हें जड़ी बूटियों का काढ़ा दिया जाता है
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